३० दिन के अगले कदम

दिन ६: परमेश्वर को जवाब देना

मैं परमेश्वर को कैसे जवाब दूँ?


हम इसलिये प्रेम करते है, कि पहले उसने हम से प्रेम किया।

1 यूहन्ना 4:19

मान लीजिये कि आप एक बहुत बड़े जंगल में पैदल चल रहें है, आप रास्ते से भटकर मार्ग खो बैठे। रात हो आती है और अंधेरा छा जाता है और ठंड भी पड़ रही है। आपके पास खाने-पीने के लिए कुछ भी नहीं। आप अंधेरे में ठोकर खाकें दिशाहीन होकर घूम रहें हो “मैं अब कभी सुरक्षित स्थान पर नहीं पहुंचूँगा,” यह डर आपको भयभीत कर रहा है।

तभी आपकी आतुर आंखों को दूर एक रोशनी दिखाई पड़ती है। आप यह समझ जाते हैं किः कोई मुझे ढूंढ रहा है। यह रोशनी आपकी ही ओर आ रही है। आप पुकार कर कहते हैं, “मैं यहां हूँ,” फिर जवाब आता हैः “बुलाते रहो,”। कुछ क्षणों के बाद ही आपको बचाने वाला दिखता है, एक जंगल का रक्षक जिसे घने वनों का अच्छा ज्ञान है और जो घर जाने के रास्ते को समझता है। धीरे- धीरे वह आपको लौटा ले चलता है और आपको आपके घर के द्वार तक ले जाकर छोड़ता है और वह कहता है “तुम अब सुरक्षित हो, “आप उसके करूणामय और पिता समान चेहरे को देखते हो। आप, ऱाहत की साँस लेते हो और आप उनका सिर्फ एक ही तरह से धन्यवाद दे सकते हो कि “मैं आपका कर्ज कैसे चुका सकता हूं? “और आप जानते हो कि कोई भी कीमत काफी नहीं है,”

इसी तरह, हमारे स्वर्गीय पिता परमेश्वर ने हमें छुड़ाया है हमारी स्थिति हमारी कल्पना से भी बद्तर थी। हमारे पास ऐसा कोई रास्ता नहीं था जिसे हम स्वयं निकाल पाते। वह आया और हमारा व्यक्तिगत रूप से मार्गर्दशन कर ले हमें अनंतकाल की मृत्यु की महामरी से छुटकारा दिलाया।

हमारा एकमात्र जवाब उससे अपने पूरे हृदय, पूरी आत्मा, पूरे मन और पूऱी शक्ति से प्रेम करना है। बाईबिल का केन्द्रिय विषय यह है कि हमें एक बहुत बड़े उद्देश्य के लिये बनाया गया है: कि हम परमेश्वर के प्रेम को पाये। यह एक दो तरफ़ा रास्ता है!

दिन ७: जीवन का अर्थ


परमेश्वर ने हमे किस से छुडा़या है। उसने आपको किस स्थिति से छुड़ाया है? क्या आप किसी से इस विषय में बाते करना चाहते है?