३० दिन के अगले कदम

दिन १२: स्वयं से प्रेम करना

मैं स्वयं से प्रेम कैसे करू?


आप ने ही मेरे आन्तरिक अंगों की रचना की। मेरी माता के गर्भ में आप ने मेरी देह का ताना-बाना बुना है। मैं आपकी स्तुति करता हूं क्योंकि आपने मुझे अलौकिक और विलक्षण ढंग से बनाया है”

भजन 139:13, 14

कल के पाठ से “आश्चर्य” कराने वाली बात यह है: दूसरों को प्रेम करने का संदर्भ यह है कि हम “स्वयं से प्रेम करें, स्वयं को तैयार करें “अपने पड़ोसी को अपने समान प्रेम करें।” पर यह आसान नहीं है.

कुछ लोग यह गलती करते हैं कि स्वयं से प्रेम करने का अर्थ खूब सारी चाकलेट खाना या अपने बूते से बाहर की महँगी घड़ी खरीद लेना है! लेकिन स्वयं आसक्ति क्षणिक भी हो सकती है।

कुछ लोग स्वयं की तीव्र अपकर्षता बोध के कारण अपने से प्रेम करने में कठिनाई अनुभव करते हैं “मैं कभी भी उसके समान नहीं बन सकती!” “मैं कभी भी किसी काबिल नहीं बन सकती!” वह अपनी तुलना दूसरों से करते हैं। जिसकी विषय पौलुस ने कहा है कि यह एक “अविवेकपूर्ण” चलन है (देखिये 2 कुरिन्थियों 10: 12)।

कुछ दूसरे लोग अपनी उपेक्षा अपनी पूर्वकाल की गलतियों अथवा पापों के कारण, जिनके वे दास थे उनकी वजह से करते हैं। उन्हें परमेश्वर द्वारा दिये छुटकारे का पूरा ज्ञान नहीं है कि जब हम उसकी क्षमा मांगते और पाप क्षमा स्वीकार करते हैं तो वह कृपालु परमेश्वर हमारे पूर्वकाल के बोझों से हमें बरी करता है।

अपने आपको प्रेम करने की कुंजी यह है कि हम अपने आप को वैसा देखें जैसा प्रभु यीशु परमेश्वर हमें देखते हैं। आप उनके लिये अमूल्य, बेशकिमती, उसके प्रेम को पाने वाले, उसकी आत्मा से पूर्ण, उसकी देह रूपी कलीसिया के सदस्य और परमेश्वर की महान योजना जो आपके लिये है उसके प्रणिधि है। कुछ समय लेकर मसीह परमेश्वर में आपकी सृष्टि की भव्यता के विषय विचार करें।

उसके समान जिसे परमेश्वर द्वारा गहरा प्रेम किया- अपनी बुरा आत्म चित्रण और पुराने समय के बोझ से मुक्ति पाकर आप अपने आपको प्रेम कर सकते है और अपने पड़ोसी से अपने समान ही प्रेम कर सकते है।

दिन १३: पुराने स्वभाव पर जयवंत होना


परमेश्वर ने तुम्हें प्रेम में सृजा है। तुम अपने को वैसे कैसे प्यार कर सकते हो जैसे परमेश्वर ने तुम्हें प्रेम किया? सुझाव चाहिये?