३० दिन के अगले कदम

दिन १५: बने रहना: मसीही जीवन का ह्रदय स्थल

मैं यीशु के समीप कैसे रह सकता हूं?


परमेश्वर के निकट आओ, तो वह भी तुम्हारे निकट आएगा।

याकूब 4:8

आपके इस अध्ययन के परिणास्वरूप मेरी सर्वप्रथम इच्छा यह है कि आप यीशु से बहुत पास रहें।

(वचन में उपयुक्त शब्द है "बने रहना")। उसमें बने रहो। हांलाकि मैं इस क्षेत्र में कुछ संघर्ष करता हूं क्योंकि मुझमें यह बुरी बात है कि "मैं अपने कार्य करना चाहता हूँ," मेरे जीवन का लक्ष्य यह है कि मैं जितना संभव हो सके यीशु के उतने करीब रहूं।

बने रहना ज्ञान अर्जित करने से अधिक है। हम अपने विश्वास के आधार को जानते हुए भी यीशु को बिना जाने रह सकते हैं। बने रहना कार्य करने से अधिक है। यीशु मसीह के साथ एक गहरा सम्बन्ध ही हमारी सर्वोच्च प्रमुख उद्देश्य है। अच्छे कर्म अपने आप होते जायेंगे।

यीशु एक अत्यंत प्रभावशाली अलंकार का उपयोग करते है कि वह हमारे साथ के अपने संबंध की व्याख्या कर सके: "मैं दाखलता हूँ तुम डालियाँ हो। जो मुझमें बना रहता है, और मैं उसमें, वह बहुत फल फलता है; क्योंकि मुझ से अलग होकर तुम कुछ भी नहीं कर सकते" (यूहन्ना 15: 5)

सत्य यह है कि हम डालियां प्रभु यीशु रूपी दाखलता पर पूर्ण रूप से निर्भर है सहायता अपनी उत्पादन अपने जीवन संबंध आवश्यकताओं के लिए निर्भर है। बने रहना हमारे जीवन के सारे पहलूओं पर लागू होता है- हमारे सोच-विचार, धन-संपत्ति और हमारे रिश्तों पर भी हम जब यीशु पर पूरा भरोसा करते हैं तब उसमें बने रहते है, उससे एक मित्र की तरह बाते करते हैं और उसकी उपस्थिति का आनंद उठाकर, उसके प्रेम, देखभाल और सुरक्षा में निरापद हो वास करते हैं।

इस जाल से सावधान हो जाये कि ‘बने रहने’ से पहले आपको कुछ करना पड़ेगा। बने रहना भविष्य में नहीं परन्तु अभी है। यीशु मसीह के करीब रहना अपना सर्वप्रथम लक्ष्य बनाईये। उसमें बने रहो!

दिन १६: प्रभु में आनंदित रहना


बने रहना र्का अर्थ है जुड़ें रहना। आप यीशु से कैसे जुड़े रह सकते है? किसी से पूछिये कि यीशु से कैसे जुड़े रहें।