३० दिन के अगले कदम

दिन ९: सहायक

मुझे एक मसीही जीवन कैसे जीना है?


परन्तु यदि मैं जाउँगा, तो उसे तुम्हारें पास भेज दूंगा।

यूहन्ना 16:7 में यीशु ने वायदा किया है

कुछ लोगों को यह गलतफहमी है कि एक बार जब हम विश्वास कर लेते हैं तब फिर हमें अपनी जिंदगी अपने हिसाब से जी सकते हैं। मैं कभी-कभी उस जाल में फंस जाता हूं, सोचता हूं कि मेरी क्षमतायें काफी है। आप अपनी व्यक्तिगत क्षमताओं के विषय सोचिये। अपने पास अभिव्यक्ति करने, मूल्यांकन करने और खेल-कूद की क्षमतायें होगी। सावधान रहिये वही ताकते परमेश्वर की सर्वोत्तम योजना के लिए रोड़ा बन सकती है।

परमेश्वर की इच्छा यह नहीं कि हम अपने-आप में स्वयं पर्याप्त हो जाये, पर यह कि हम नम्रतापूर्वक उसको समर्पित उसके नजदीक और उस पर निर्भर सम्बन्ध में बने रहे। अब तक यह बात आपको चौकायेगी नहीं कि उसने तुम्हें एक असंभव कार्य नहीं दिया है। बल्कि उसने अपनी पवित्र आत्मा को भेजकर हमारे समर्पित जीवन को संभव किया है।

यूहन्ना 14 में हमें प्रभु यीशु द्वारा पवित्र आत्मा की व्याख्या मिलती है,अध्याय 14: 16, 17 और 26। वहां पर वह आपको जीवन भर के सलाहकार सहायक, साथी, शिक्षक और मित्र के रूप में मिलते हैं।

आप यह अपेक्षा न करें कि पवित्र-आत्मा किसी चमक-दमक और दिखावे के साथ आयेंगे। वह बहुत ही शांत रूप से बिना किसी को परेशान किये हुए आयेंगे। वह हमेशा यीशु मसीह की ओर मोड़ते हैं अपने ओर नहीं। जब हम उसकी उपस्थिति के अहसास में रहते हैं तब वह हमारे कानों में धीरे से बोलता है और हमारे हृदय को स्पर्श करता है। वह हमारे साथ बने रहने के लिये कटिबद्ध है।

दिन १०: रूपान्तरित मन


आपने अपने जीवन में पवित्र आत्मा का कार्य कब महसूस किया है? वह कैसा लगता है?