३० दिन के अगले कदम

दिन २६: उसमें, लेकिन उसके नहीं

मैं अपने जीवन में संतुलन कैसे बनाकऱ चलूँ?

दिन २६: उसमें, लेकिन उसके नहीं

जैसे मैं संसार का नहीं वैसे ही वे भी इस संसार के नहीं। जैसे तूने जगत में मुझे भेजा वैसे ही मैने भी उसे जगत में भेजा।

यूह्न्ना 17:16, 18

मसीह जीवन की एक बड़ी चुनौती अपने आसपास के संसार के साथ संबंध बनाना है विशेषकर जब सहकर्मी और रिश्तेदार मसीही सिद्धांतों से हटकर व्यवहार करते हैं। जब हम दूसरों के साथ परस्पर मिलते हैं तो दो गलतियाँ कर सकते हैं:

पहला अपने को “अलग” करना। क्या हो यदि हमारे अलगाव लोगों को उस परमेश्वरीय प्रभाव से वंचित करें जो हम उनकी जिन्दगी में ला सकते हैं? क्या हम ही वह “बाइबल” होंगे जो वह पढ़ रहे है?

दूसरी गलती यह है कि हमारे आसपास के लोगों के जैसा ही बन जाना। बाईबिल की शिक्षा यह है कि समझौता न किये जाने के विषयों पर अलग खड़े हो जाये और साथ ही अपने आप को लचीला और दूसरों की पहुँच तक बनाये रखें ताकि दूसरे यह देख सके (देखिये मलाकी 3: 18, 1 कुरिन्थियों 9: 19-22)

यीशु मसीह ने संतुलित रूख का उदाहरण पेश किया। वह न ही विलग हुए न ही समा गये। लोग जहां पर थे वहां पर वह उनसे मिले लेकिन कोई समझौता नहीं किया।

बिली ग्रहाम ने कहां हमें गल्फ़ स्ट्रीम (खाड़ी के सरोवर) की तरह होना चाहिए, जो महासागर में होते हुए भी उसका भाग नहीं बिना। विश्वासी इस संसार में रहते हैं लेकिन उन्हें उसके द्वारा सोख लिया नहीं जानाा है। इसलिए हमें अपनी पहचान और उद्देश्य को बनाये रखते हुए हमारे चारों ओर के वातावरण को प्रभावित करना है। हमें इस संसार में रहना है लेकिन इसका नहीं होना है।

दिन २७: जब हम ठोकर खाते है


जैसे- जैसे आप यीशु में बढ़ते है, आपका जीवन इस दुनिया के लोगों से कितना अलग होता है? क्या आपके जीवन के बदल जाने पऱ आपका इस संसार से टकराव हुआ है? एक यीशु मसीह पर विश्वास करने वाले व्यक्ति से बात करें कि वह आपकी सहायता कर सके।